Rahat Indori Kavita

agar-khilaf

अगर खिलाफ है होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई जद में
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है
हमारे मुह से जो निकले वही सदाकत है
हमारे मुह में तुम्हारी जबां थोड़ी है
में जानत हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है
जो आज साहिब-ए- मनसद है कल नहीं होंगे
किरायेदार है जाती मकान थोड़ी है
सभी का खून है यहाँ की मिटटी में
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है

Rahat Indori Shayari