हुश्न और इश्क में क्या गजब की यारी
एक परिंदा है तो दूसरा शिकारी
क्या हो जायेगा तेरे रोने या न रोने से ऐ दिल
जब उसे कोई फर्क ही नही पड़ता तेरे होने या न होने से
न देख कर ये चेहरा अब दिल खोलते हैं
कभी कभी कुछ शीशे भी झूठ बोलते हैं
हँस हँस के जवाँ दिल के हम क्यूँ न चुनें टुकड़े
हर शख़्स की क़िस्मत में इनआ’म नहीं होता
इक झलक जो मुझे आज तेरी मिल गई
फ़िर से आज जीने की वज़ह मिल गई
लोग कह्ते है की बीना महेनत कुछ पा नहि सकते
ना जाने ये गम पाने के लिये कौन सी महेनत करली हमने
बस इतना सा अहेसान तू मुझ पे किया कर
मेरी आँखों में देखकर मेरा दर्द पहेचान लिया कर
कौन कहता है ,मुर्दे जिया नही करते
मैंने आशिकों की बस्ती में लाशों को चलते देखा है