तेरी बात ख़ामोशी से मान लेना
यह भी अन्दाज़ है मेरी नाराज़गी का
कितनी शिद्दत से मैंने चाहा था उसको
कोई अपना दुश्मन भी होता तो निभाता उम्र भर
दर्द लेकर उफ़ भी ना करे ये दस्तूर है
चल ए ईश्क़ हमे तेरी ये शर्त भी मंजूर है
तेरे इंतज़ार में मेरा बिख़रना इश्क है
और तेरी मुलाक़ात पे निख़रना इश्क है
Manzilo se gumrah bhi kar dete hai kuch log
Har kisi se rasta puchna bhi accha nahi hota
जिस चीज़ पे तू हाथ रख दे वो चीज़ तेरी हो
और जिस से तू प्यार करे वो तक़दीर मेरी हो
एक भी दिन ना निभा सकेंगे वो मेरे किरदार
वो लोग जो मुझे मशवरे देते हज़ार