किताब के सादे पन्ने सी शख्सियत मेरी
नजरंदाज कर देते है अक्सर पढने वाले
क्या अजीब सबूत माँगा है उसने मेरी मोहब्बत का
मुझे भूल जाओ तो मानू की तुम्हे मुझसे मोहब्बत है
अब तेरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं
कितनी मोहब्बत थी तेरे नाम से पहले पहले
काटकर गैरों की टाँगें ख़ुद लगा लेते हैं लोग
इस शहर में इस कदर भी कद बढ़ा लेते हैं लोग
गज़ब की धूप है शहर में फिर भी पता नहीं
लोगों के दिल यहाँ पिघलते क्यों नहीं
करवटें सिसकिया कशमकश और बेताबी
कुछ भी कहो मोहब्बत आग लगा देती है
एक मैं हूं के समझा नहीं खुद को आज तक
और लोग हैं, न जाने मुझे क्या-क्या समझ लेते हो
तुम जो थाम लेते हो ना मेरा यह हाथ ख्वाबो में
कुछ इसलिए नींद के शौक़ीन हो गए है हम
तुम समझ लेना बेवफा मुझको मै तुम्हे मगरूर मान लूँगा,
ये वजह अच्छी होगी एक दूसरे को भूल जाने के लिये