कुछ अलग था कहने का अंदाज़ उनका
के सुना भी कुछ नहीं कहा भी कुछ नहीं
कुछ इस तरह बिखरे उनके प्यार में हम
के टोटा भी कुछ नहीं और बचा भी कुछ नही
खुद को मशरूफ समझते हो ज़रा एक बात सुन लो
जिस दिन हम हुए मशरूफ तुम्हें शिकवा बहुत होगा
आज बैठी हूँ अपनी ही घर की दहलीज़ पर
कभी सोचा ना था मोहब्बत ये दिन भी दिखाए गी
तेरा नसीब मेरे नसीब में लिखा ही नहीं
छोड़ दिया तुझे भी याद करना खुद को बेवफा समझ कर
piyaar ka anzaam kaun sochta hai
chane se pahle niyat kaun dekhta hai
mohabbat ek andha ahesaas hai
karte hai sab par mukaam par kaun Pahuchta hai
tum acche ho to bhetar tum bure ho to bhi qabul
hum mizaz-a-dosti mein ayb-dosti nahi dekha karte